एक मामुली सा पेड है वह
सुनसान बंजर जमीन पे
वक्त के थपेडे खाता
बस एक मामुली पेड
पत्ता पत्ता सूख रहा है
और तेज हवा
पत्तों को पेड से अलग करती
एक-एक शाख को नंगा करती
कुछ समय पुर्व
माहौल कुछ अलग था
हर शाख थी हरी भरी
पत्ता पत्ता खीला हुआ
दूर कही से पंछी आया
थका हुआ सा पनाह लेने
हरा भरा देख उस पेड को
वही घरोंदा कर बैठा वो
प्रातः से सांज तक
उस पंछी की चहचहाहट
एक नयी उमंग भर देती
नये नये ख्वाब संजोकर
वक्त गुजरा, मौसम बदला
सुखे का मौसम आया
हर पल एक पत्ता
लेता गया अपने साथ
देख यह, वह पंछी घबराया
कडी धूप वो न सह पाया
निकल पडा उस पेड को छोड
तलाश में एक नया पेड
मायुसी ने पेड को गले लगाया
सुखे ने अपना रंग गहराया
और पेड जब खाली घरोंदा देखता
बेहद उदास वह बन जाता
उस पेड ने सुना था कभी
ये वक्त भी गुजर जायेगा
सांज कभी सांज न रहेगी
नया सवेरा जरूर आयेगा
एक अरसा हुआ वक्त को गुजरे
वही.. उसी जगह खडा है वह
नंगी शाखों से सजा हुआ
एक मामुली सा पेड
– शून्य